|
|
|
|
विश्व विख्यात परम संत बाबा जय गुरूदेव जी महाराज का अवतार भारत के उत्तर प्रदेश की
पावन भूमि के एक छोटे से देहात में हुआ। धर्म के प्रति आस्था व परमात्मा प्राप्ति का
मार्ग जानने की उत्कर इच्छा बाल्यावस्था से ही रही। बाल्यावस्था में आपके पिता का
देहान्त हो गया माताजी ने शरीर छोडने से पूर्व स्वामी जी को यही इच्छा आदेश के रूप
में दिया कि प्रभु प्राप्ति का मार्ग प्राप्त कर ईश्वर को प्राप्त अवश्य कर लेना।
छोटी उमर में स्वामी जी महाराज भगवान की खोज में निकल पडे। हिन्दु मन्दिरो में कई जगह
महन्तो व पुजारियो की सेवा बहुत लगन के साथ की इस आशा से शायद भगवान के दर्शन महन्त
व पुजारी करवा देगें। ज्ञानी जनो की सेवा करके धार्मिक ग्रन्थो का पाठन किया। धार्मिक
ग्रन्थो के पाठ से यह संतोश हुआ की ईश्वर है परन्तु कैसे मिलेगा यह पता नही चला। तब
स्वामीजी ने भेषधारियो का साथ लिया उनको नहलाना लंगोट व कपडे साफ करने जैसी सेवाये
की भेषधारियो के साथ से भी स्वामीजी को भगवान के दर्शन नही हुये । किसी ने स्वामीजी
को मसजित में जाने तथा नमाज अदा करने से खुदा प्राप्त होगा ऐसी सलाह दी । सलाह के
अनुसार मसजित गये, मुल्ला मौल्वीयो की आरजू मिन्नत करके नमाज अदा करना सीखा। नमाज
अदा करते समय एक दिन स्वामीजी को मसजित के पीछे से किसी जीव की करूणामय चित्कार सुनाई
दी । स्वामीजी ने नमाज पढना तुरन्त करना बंद कर दिया। मसजित के पीछे जाकर देखा की
काजी सहाब बकरे को हलाल कर रहे है। परविद्या की कुछ झलक आपको प्राप्त हो चुकी थी । यह
बात स्वामीजी को बहुत बुरी लगी और उन्होने उस स्थान को छोड दिया।
यह धटना सन् 1938 की है । एक कथा वाचक ने द्वारकापुरी में बताया की शंख चक्र की छाप लगवाने
से ईश्वर की प्राप्ति होती है और यमराज से छुटकारा मिल जाता है । स्वामीजी ने एक साधु
के साथ शंख, चक्र, गदा आदि की छाप तपते लोहे के छाप से लगवाई, साधु तुरन्त स्नान
करने चला गया और उसे बुखार हो गया । स्वामी जी ने एक सप्ताह स्नान नही किया शंख चक्र
की छाप लगवाने से ईश्वर प्राप्ति नही हुई बल्कि शारीरिक परेशानी बढ गयी। कश्मीर यात्रा
में साधुओ की मण्डली के साथ स्वामी जी भी भगवान की खोज में उनके साथ चल पडे । यह पूरी
मण्डली भांग, गांजा व सुलफा पीने वाली थी। भगवान प्राप्ती की लालसा में स्वामी जी साधुओ
को बढिया भांग धोल - धोल कर पिलाते तथा उनकी चिलम भर देना आदी सेवा करते रहे। अपने
पूर्व संस्कारो के कारण स्वय ने तो बीडी भी नही पी थी। लेकिन परमात्मा प्राप्ती के
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर छोटी बडी सेवा करते रहे। साधुओ की मण्डली एक स्थान
पर रूकी । वहा पर एक साधु ने जोर से चिलम खीची उसके प्राण वायु गुदा चक्र के द्वारा
निकल गये और चिलम नीचे गिर गई । इस ढंग के माहात्माओ का साथ करने से एक निराशा की भावना
स्वामीजी के दिल में आयी ईश्वर नही है तथा उसको प्राप्त करने का मार्ग भी नही है। इस
निराशा में स्वामीजी ने डल झील में कूद कर आत्म हत्या करने का विचार बनाया। झील के
किनारे ही गये तभी एक मधुर आवाज पीछे से आयी बच्चे भगवान प्राप्ती का
साधन है। तुमको एक गृहस्थ से मिलेगा स्वामीजी को एक महामानव की आकृति का आभास हुआ।
आवाज मे मधुरता तथा आकर्षण था स्वामीजी ने उसी समय आत्महत्या का भाव त्याग दिया कश्मीर
से लौटते समय एक त्रिकालदर्शी महात्मा मिले । उन्होने बताया की आपकी मनोकामना छः महिने
मे पूरी हो जायेगी।
यह समय सन् 1948 का प्रारम्भिक काल था। महापुरूष घुरे लाल जी महाराज अलीगढ के पास चिरौली
गांव में रहते थे । एक दिन उन्होने अपने बडे लडके से कहा की बैलगाडी लेकर जाओ । बस
स्टैण्ड पर एक नौजवान जो की तंदुरुस्त शरीर, गौर-वर्ण, चमकता चेहरा, सिर पर केश बढे
हुये है मिलेगा, उसे मेरे पास ले आना। पिता की आज्ञा के अनुसार पंडित जी के पुत्र बस
स्टैण्ड पर पहुचे वहा स्वामीजी बस से मन में प्रेरणा के कारण बस स्टैण्ड पर उतर गये।
पण्डित जी के पत्र ने उनको तुरन्त पहचान लिया और उनसे कहा की आपको हमारे पिताजी ने
बुलाया है। स्वामीजी एक अजनबी जो की उन्हे अनजान जगह पर पहचानता है, यह सोच कर आश्चर्य
चकित हुये । पंडित जी के घर पहुचे स्वामीजी ने उन्ही महामानव आकृति के दर्शन किये जिनकी
मूरत कश्मीर से अपने मन में बसाये हुये थे । स्वामीजी अपने गुरू के चरणो में सिर रख
कर बिलख बिलख कर रोने लगे महापुरूष धुरेलाल जी महाराज ने कहा की रोते क्यो हो बहुत
भटक लिये अब तो आ ही गये हो दादा गुरूजी ने स्वामी जी को दीक्षा दी । सूरत शब्द योग
मार्ग बताया भगवान प्राप्ति का भेद दिया जिसको सभी महापुरूषो ने जारी किया है। स्वामी
जी 24 धण्टे में अठारह- अठारह धण्टे साधना करते थे । एक महिने तक उन्हे कुछ भी प्राप्त
नही हुआ । एक महिने के बाद गुरू की दया हुयी और परमात्मा की सत्ता का अहसास उनको होने
लगा। दिन में एक रोटी खाकर साधना करते रहे कुछ ही समय में स्वामी जी ने साधना की पूर्ण
अवस्था को प्राप्त कर लिया दादा गुरू ने सन् 1948 में निजधाम जाने से पहले प्यारेलाल
जी पाठक को बताया की उनके बाद सतसंग (स्वामी जी) तुलसीदास (स्वामी जी का नाम) सभालेगे।
10 जुलाई 1952 से काशी में एक आदमी को नाम दान की दीक्षा दी स्वामी जी ने जीव कल्याण
के लिऐ अथाह मेहनत व परिश्रम किया । जिसके परिणाम स्वरूप 1971 तक स्वामीजी महाराज के
एक करोड शिष्य हो गये । देश में शाकाहरिता एवं नशामुक्त होने का सन्देश स्वामी जी ने
जारी किया। करोडो लोगो को शाकाहारी, सदाचारी, मेहनती, ईमानदारी तथा चरित्रवान बनाकर
व्यापक जनजागरण किया । करोडो लोगो को प्रभु प्राप्ति का मार्ग देकर भजनानंदी बनाया । करोडो
लोगो के दुःख तकलीफ दुर करके उनको खुषहाली का रास्ता बताया । स्वामी जी ने जय गुरूदेव
नाम को सिद्व किया तथा कहा की हर मुसीबत में यह नाम लेने से दुख तकलीफ दूर होगी। स्वामीजी
ने कहा की मौत के समय यह नाम लेने पर मौत कि पीडा की अनुभूति कम होगी।
अपने जीवन काल में परम् संत बाबा जयगुरूदेव जी महाराज ने हमेशा अपने को सेवक के रूप
में व्यक्त किया । अपना असली रूप जो कुल मालिक का है उसे पर्दे में रखा अठहारह मई 2012
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदर्शी को उन्होने अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर अपने निजधाम
जाने की मौज फरमाई।
सन्देश
1. मनुष्य शरीर किराये का मकान है इसमे जिवात्मा जो प्रभु का अंश है वो विराजमान है
2. मनुष्य शरीर को साॅसो की पूंजी दी गई है। जो गिनती की है, सांस खत्म होते ही शरीर
गिर जायेगा और आप मर जायेगें।
3. मकान मालिक के सिपाही मकान को खाली करवालेगे। जिवात्मा को हिसाबकर्ता के पास सिपाही
ले जायेगे।
4. हिसाबकर्ता पुण्य कर्म का भी हिसाब लेगा तथा पाप कर्म का भी हिसाब लेगा।
5. कर्मो की सजा के लिए मालिक ने नरक तथा 84 लाख यौनिया बनाई है।
6. जीव अनगिनत समय से नरको व 84 लाख योनियो में भटक रहा है, जहाँ दुखः तथा मुसीबत झेल
कर अब मनुष्य शरीर मिला है।
7. मनुष्य शरीर पाने का एक मात्र उद्देष्य भगवान को प्राप्त करना है।
8. बिना पूर्ण महात्मा के भगवान को प्राप्त नही किया जा सकता।
9. पूर्ण महात्मा की तलाश करे, तथा भजन का रास्ता लेकर भजन करे और अपने मनुष्य जीवन
को सफल बनाये।
10. भगवान प्राप्त करने के लिए शाकाहारी होना होगा तथा सभी नशों को छोडना होगा।
अगले गुरू के लिए बाबाजी की धोषणा्
बाबा जयगुरूदेव जी महाराज ने 16.05.2007 को बसीरत गंज जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश में
धोषणा की नये लोगो के लिए जो नये आयेगे नाम ये उमाकान्त तिवारी और पुराने जो नामदान
लिया है, उनकी सम्भाल करते रहे, जो भूले भटके जो बता देगे और भजन ध्यान करायेगे। यहाॅ
सुनते रहिये और बराबर याद रखिये और जब ये जाने लगेगे तो कह देगे, किसी को, जिसको
सम्झेगे की ठीक है और अभ्यासी है साधन भजन करता है और उसको प्राप्त है, इसी को बता
देगे ..... संतमत में ऐसा ही चलता है ऐसा ही होता है उसके बाद थोडे से जो अपना अभ्यास
करते रहेगे.... फिर नया पुरूष कोई ......
प्रगट संत महाराज जी (उमाकान्त जी तिवारी)
परम संत बाबा जयगुरूदेव जी महाराज की आपार कृपा से 22.07.2013 को गुरू पूर्णिमा के
अवसर पर जयपुर राजस्थान में लाखो लोगो के सामने महाराज जी वक्त के सदगुरू को प्रगट
होते हुये सभी जनमानस ने देखा । उस दिन प्रातः महाराज जी ने जीव कल्याण के लिए नये
लोगो को नामदान देकर संतमत का व्यापक रूप से प्रचार किया और उपस्थित जन समूह को प्रभु
प्राप्ती का सरल एवं सुलभ मार्ग उपलब्ध कराया । इसी अवसर पर महाराज जी ने बाबाजी के
शाकाहारी सन्देश को बुलंद करते हुये देश के कर्णधार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियो,
डीएम, तथा जिम्मेदार अधिकारियो से शाकाहारी एवं नशों से मुक्त होकर देश में सभी बूचड़खानों
एवं शराबखानो को बन्द कर गाय को राष्ट्रीय पशु धोषित करने की अपील की । अगर जिम्मेदार
लोगो ने ऐसा कर लिया तो जनता इन्हे ह्रदय में बसा लेगी अगर नही माना गया तो लाखो नौजवानो
के द्वारा देश में शाकाहारिता का कानून लागू करवा लिया जायेगा। महाराज जी द्वारा लगातार
संत मत के व्यापक प्रचार के लिए नामदान प्रभु प्राप्ती का रास्ता जो की जयपुर से प्रारम्भ
हुआ था। हर सतसंग में भी दिया जा रहा है। शाकाहारिता का सन्देश महाराज जी ने जन-जन तक
पहुचा दिया है। खराब समय जो अभी आने वाला है उससे बचाव के लिए महाराज जी ने प्रति दिन
2 धण्टे साधाना करने के लिए कहा है तथा सभी सत्संगियो के लिए रक्षा कवच के रूप में
गुलाबी वस्त्र धारण करने का आदेश दिया है।
|
|
|
|
|